एससी एसटी पर घिरती केन्द्र सरकार ने अनुसूचित जाति, जनजाति अधिनियम 1989 में बदलाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसले को वापस लेने की बात कही है। केन्द्र सरकार ने एससी एसटी एक्ट फैसले के रिव्यू में लिखित दलीलें दाखिल कर कहा कि कोर्ट के फैसले से कानून कमज़ोर हुआ है। जिसके चलते देश को काफी नुकसान उठाना पड़ा है।
Central govt files written reply in Supreme Court over the judgement regarding SC/ST Act, states, 'It is submitted that the confusion created by this judgment may have to be corrected by reviewing the judgment and recalling the directions issued by this Honorable Court.' pic.twitter.com/lscZsRJdAB
— ANI (@ANI) April 12, 2018
सरकार ने आगे कहा कि जिन बेहद संवेदनशील मामलों का निपटारा किया जाता था उस पर शीर्ष अदालत के फैसले के चलते देश में हंगामा, गुस्सा और अशांति का माहौल बना।
जब से सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट पर अपना एक फैसला सुनाया है, तब से इस पर राजनीति गरमा गई है। कांग्रेस, भाजपा पर दलितों के अधिकारों का हनन करने का आरोप लगा रही है। लेकिन भाजपा ने साफ कर दिया है कि वह दलितों के साथ खड़ी है। इसलिए भाजपा ने एससी एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की है।
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून में तत्काल एफआइआर दर्ज करने और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी, जिस पर पूरे देश में राजनीति गरमाई हुई है। सरकार ने फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की।
सुनवाई में अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि फैसले से एससीएसटी कानून कमजोर हुआ है। इस वर्ग के लोग सैकड़ों वर्षों से सताए हुए हैं। कोर्ट के आदेश में तत्काल एफआईआर पर रोक लगाई गई है, ऐसे मे पुलिस मामले टालने लगेगी। केस दर्ज ही नहीं होंगे।
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून में तत्काल एफआइआर दर्ज करने और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी, जिस पर पूरे देश में राजनीति गरमाई हुई है। सरकार ने फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की। सुनवाई में अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि फैसले से एससीएसटी कानून कमजोर हुआ है। इस वर्ग के लोग सैकड़ों वर्षों से सताए हुए हैं। कोर्ट के आदेश में तत्काल एफआईआर पर रोक लगाई गई है, ऐसे मे पुलिस मामले टालने लगेगी। केस दर्ज ही नहीं होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट में तत्काल एफआइआर और गिरफ्तारी की मनाही करने वाले अपने फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने फैसले के खिलाफ केन्द्र सरकार की पुनर्विचार याचिका विचारार्थ लंबित रख ली, लेकिन 20 मार्च के फैसले पर अंतरिम रोक की मांग खारिज कर दी।
कोर्ट ने फैसले से एससी एसटी कानून कमजोर होने की दलीलें ठुकराते हुए कहा कि इससे कानून कमजोर नहीं हुआ है, बल्कि बेगुनाहों को संरक्षित किया गया है। कोर्ट की सोच है कि लोग इस कानून से आतंकित न हों और निर्दोष सलाखों के पीछे न जाएं। कोर्ट कानून के खिलाफ नहीं है, बल्कि बेगुनाहों को गिरफ्तारी से बचाने के लिए फैसले में संतुलन कायम किया गया है।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला-:
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए एससी/एसटी ऐक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया था। इसके अलावा एससी/एसटी ऐक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी थी।
इसे भी पढ़ें-: संसद में हंगामा के मामले को लेकर मोदी सरकार का देशभर में उपवास शुरू
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में ऑटोमेटिक गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे ऐक्शन लेना चाहिए। यही नहीं शीर्ष अदालत ने कहा था कि सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती। गैर-सरकारी कर्मी की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की मंजूरी जरूरी होगी।
क्या है दलित संगठनों की राय -:
दलित संगठनों का कहना है कि इससे 1989 का अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम कमजोर पड़ जाएगा। इस ऐक्ट के सेक्शन 18 के तहत ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। ऐसे में यह छूट दी जाती है तो फिर अपराधियों के लिए बच निकलना आसान हो जाएगा। इसके अलावा सरकारी अफसरों के खिलाफ केस में अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी को लेकर भी दलित संगठनों का कहना है कि उसमें भी भेदभाव किया जा सकता है।
क्या कहते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करने वाले -:
शीर्ष अदालत के इस फैसले का पक्ष लेने वालों का कहना है कि इससे इस ऐक्ट के दुरुपयोग को कम किया जा सकेगा। इसके अलावा निर्दोष लोग कानूनी पेचीदगी में पड़ने से बचेंगे। हालांकि कानूनी जानकारों की राय इस पर बंटी हुई है।
अप्रैल 23 , 2018
अप्रैल 23 , 2018
अप्रैल 23 , 2018
अप्रैल 23 , 2018
अप्रैल 23 , 2018
कमेंट करें