भारत की आजादी के लिए अपना सर्वस्व कुर्बान करने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था। भारत की आजादी का सपना लेकर सपना लेकर लड़ने वाले भगत सिंह ने आजादी के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लेकिन उसके बावजूद भी शहीद भगत सिंह के जीवित रहते हुए भारत आजाद न हो सका। भगत सिंह का परिवार सिख समुदाय से था और देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत रहता था। भारत के वीर स्वतंत्रता सेनानी भगत सिह के पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था।
13 अप्रैल 1919 को जालियां वाला बाग़ में अमृतसर के जर्नल 'डायर' ने निहत्थे और निर्दोष भारतीयों के साथ दर्दनाक मौत का खेल खेला. जलियांवाला बाग पूरी तरह खून में सराबोर हो गया था। इस नरसंहार में हज़ारों लोग बेमौत मारे गए थे।
भगत सिंह करीब बारह वर्ष के थे जब जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ था। इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जलियाँवाला बाग पहुँच गये। इस उम्र में भगत सिंह अपने चाचाओं की क्रान्तिकारी किताबें पढ़ कर सोचते थे कि इनका रास्ता सही है कि नहीं ?
जालियां वाला बाग पहुंच कर बालक भगत सिंह ने मैदान को देखा और उस मिटटी के पर छूकर उस पात्र में बाग़ की मिटटी खोद कर भर ली, और कहा,यह मेरे देश की मिट्टी मेरे लिए, पूजनीय है, लेकिन मेरे देशवासियों के लहू से सींची यह मिट्टी मेरे लिए विधाता तुल्य हो गई है। अब मैं यह संकल्प लेता हूँ कि जब तक इन अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ नहीं देता चैन से नहीं बैठूंगा।
भगत सिंह के परिवार वाले कभी ये नहीं चाहते थे, कि भगत सिंह इस तरह से देश के लिए लड़ें। आजादी की लौ दिल में जलाए शहीद भगत सिंह ने अपने स्कूली दिनों से ही एक आजाद भारत का सपना देख लिया था और जब वे इसके लिए तैयार हुए तब वे अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना सीख चुके थे। परिवार की अनुमति के बिना ही घर से भाग जाना, मित्रों के साथ समय बिताना और देश के लिए मर मिटने का जज्बा ये सभी बातें भगत सिंह को आज के इस आधुनिक युग में याद दिलाती हैं।
भगत सिंह बड़े होते गए कड़े काम करते गए और एक दिन उनकी मुलाक़ात चंद्रशेखर आज़ाद से हो गई। आज़ाद ने देश भर के क्रांतिकारियों कि एक पार्टी बना रखी थी जिसका नाम था 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी' उस समय इनकी नज़र में आया 'लाला लाजपत राय' के सर पर लाठी से वार करने वाला पुलिस अफसर 'सांडर्स' चंद्रशेखर,भगत और सुखदेव ने योजना बनाकर सांडर्स को गोली मार दी और चलते बने।
8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेम्बली में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल पेश हुआ। अंग्रेजी हुकूमत को अपनी आवाज सुनाने और अंग्रेजों की नीतियों के प्रति विरोध प्रदर्शन के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली में बम फोड़कर अपनी बात सरकार के सामने रखी। दोनों चाहते तो भाग सकते थे, लेकिन भारत के निडर पुत्रों ने हंसत-हंसते आत्मसमर्पण कर दिया।
टिप्पणियां दो साल तक जेल में रहने के बाद 23 मार्च, 1931 को सुखदेव, राजगुरु के साथ 24 साल की उम्र में भगत सिह को लाहौर जेल में फांसी दे दी गई। सरफरोशी की तमन्ना लिए भारत मां के इन सपूतों ने अपने प्राण मातृभूमि पर न्योछावर कर दिए। उनका जज्बा आज भी युवाओं के लिए एक सीख है। भारत आजाद हुआ, मगर अभी भी यह देश वैसा नहीं बन पाया, जैसा भगत सिंह चाहते थे।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह को शत शत नमन!
फरवरी 22 , 2019
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