केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) का मामला आज जब सर्वोच्च न्यायालय में गया तो जजों ने असली मुद्दे पर तत्काल अपनी राय क्यों नहीं दी ? असली मुद्दा यह था कि सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजना सही है या गलत है ? यदि इसे वह सही कह देती और इन दोनों अफसरों पर अपनी जांच बिठा देती तो वह आदर्श स्थिति होती।
वह चाहती तो दोनों अफसरों को हटाने में सरकार ने जो विधि-विधान का ध्यान नहीं रखा, उसकी आलोचना कर सकती थी लेकिन यह सब कुछ करने की बजाय अदालत ने आलोक वर्मा के विरुद्ध 15 दिन में जांच पूरी करने का आदेश दे दिया है याने राकेश अस्थाना ने वर्मा के खिलाफ जो 2 करोड़ की रिश्वत का आरोप लगाया है, उसकी जांच एक उच्च कोटि के जज की देखरेख में होगी लेकिन आश्चर्य है कि राकेश अस्थाना की जांच के बारे में अदालत ने कुछ नहीं कहा। अस्थाना का मामला इस बहाने से नहीं सुना गया कि वे अदालत में देर से पेश हुए।
वास्तव में जांच तो पहले अस्थाना के विरुद्ध होनी चाहिए थी, क्योंकि उनके खिलाफ शिकायत पहले की गई थी और एफआईआर भी उनके खिलाफ दर्ज हो चुकी है। वास्तव में जांच तो दोनों अफसरों के विरुद्ध एक साथ होनी चाहिए। दुर्भाग्य यह है कि कांग्रेस ने आलोक वर्मा पर छाता तान लिया है और मोदी सरकार राकेश अस्थाना की पक्षधर सी लग रही है। इससे जनता क्या समझेगी ? क्या यह नहीं कि हमारे सभी नेता भ्रष्ट हैं और वे अपने-अपने भ्रष्टाचारी पर पर्दा डालने पर आमादा हैं ?
सर्वोच्च न्यायालय ने यह ठीक किया कि सीबीआई के नए कार्यवाहक निदेशक नागेश्वर राव के अधिकारों को सीमित कर दिया गया है और उन्होंने जिन अफसरों का तबादला किया था, उनके बारे में जानकारी मांगी है याने अदालत को शक हो गया है कि कार्यवाहक निदेशक से कोई भी गलत काम करवाया जा सकता है। वर्मा और अस्थाना के इस दंगल ने हमारे नेताओं और सीबीआई की रही-सही प्रतिष्ठा को पैंदे में बिठा दिया है। आशा है कि सर्वोच्च न्यायालय सचमुच दूध का दूध और पानी का पानी कर देगा।
फरवरी 22 , 2019
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