तीन तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को छठे दिन सुनवाई पूरी हो गई है। कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है। कोर्ट ने बुधवार को पूछा था केंद्र ने मुस्लिमों में शादी और तलाक के लिए कानून क्यों नहीं बनाया, इसे रेगुलेट क्यों नहीं किया।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक मुद्दे को माइनॉरिटी बनाम मेजॉरिटी का रूप दे दिया। बुधवार को पांचवें दिन की सुनवाई के दौरान तीन तलाक समर्थकों और विरोधियों की दलीलें पूरी हो गईं।
कोर्ट के सवाल पर केंद्र सरकार का जवाब
पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने कहा कि,
आप (केंद्र) कहते हैं कि अगर कोर्ट ट्रिपल तलाक को अमान्य घोषित कर दे तो आप कानून बनाएंगे, लेकिन सरकार ने पिछले 60 साल में कोई कानून क्यों नहीं बनाया?
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने जवाब दिया कि सेकुलर कोर्ट की खासियत ये थी कि जब ऐसे मसले उसके सामने आएं तो कानून का इंतजार किए बगैर वो सुधार करे।
मैं वो करूंगा जो मुझे करना चाहिए, पर सवाल ये है कि आप (कोर्ट) क्या करेगी। मैंने निर्देशों के हिसाब से बयान दिया है। शीर्ष अदालत मौलिक अधिकारों की रक्षक है और इसे देखना चाहिए कि क्या कहीं इन अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा है।
ऐसे चली सुनवाई
सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि,
लोग तीन तलाक भूल रहे हैं। कोर्ट ने कोई फैसला दिया तो यह मरणासन्न परम्परा फिर जिंदा हो उठेगी
चीफ जस्टिस खेहर ने जवाब देते कहा कि,
क्या महिलाओं के लिए नया निकाहनामा बन सकता है, जिसमें वह तीन तलाक को नकार सके
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोड के वकील यूसुफ मुचाला ने कहा कि,
सुझाव अच्छा है। बोर्ड इस पर विचार करेगा। बोर्ड काजियों को सिर्फ सुझाव दे सकता है।अमल करना उनके ऊपर है
कपिल सिब्बल ने कहा कि,
आज अल्पसंख्यकों की हालत उस चिड़िया जैसी है, जिसे गोल्डन ईगल दबोचना चाहता है। उम्मीद है कि चिड़िया को घोंसले तक पहुंचाने के लिए कोर्ट न्याय करेगा
सरकार ने दी ये दलीलें
अटॉर्नी जनरल रोहतगी ने कहा कि, अगर 25 देशों में तीन तलाक का सिस्टम नहीं है तो इसे इस्लाम का अहम हिस्सा नहीं कहा जा सकता। अगर पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक को ऑप्शनल, पाप और गलत बताता है कि तो फिर यह इस्लाम का अलग न हो पाने वाला हिस्सा कैसे हो सकता है?
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से सुप्रीम कोर्ट के 2 सवाल
1. क्या निकाहनामे के दौरान महिला तीन तलाक को न कह सकती है? चीफ जस्टिस जीएस खेहर ने सिब्बल से पूछा- क्या ये संभव है कि महिला को निकाह से पहले ये ऑप्शन दिया जाए कि उसकी शादी तीन तलाक के जरिए खत्म नहीं होगी?
2. क्या काजियों को निकाह के वक्त इस कंडीशन को शामिल करने के लिए कहा जा सकता है?
मुस्लिम लॉ बोर्ड के जवाब
एडवोकेट यूसुफ हातिम मुछाला ने कहा, काजियों को बोर्ड की सलाह मानना जरूरी नहीं है। मुछाला ने लखनऊ में 14 अप्रैल, 2017 को हुए AIMPLB कॉन्क्लेव में पास रेजोल्यूशन का हवाला भी दिया। इसमें कहा गया था कि तीन तलाक के जरिए निकाह तोड़ने वालों का कम्युनिटी से बायकॉट करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने 2 सुझाव दिए
1. निकाहनामा में एक क्लॉज ये जोड़ा जाए जिसके तहत पति तीन तलाक के जरिए तुरंत शादी तोड़ नहीं सकता।
2. हमारी तरफ से कोई निष्कर्ष ना निकालें।
फरवरी 23 , 2019
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